मनोरंजक कथाएँ >> आलसी टुनमुन आलसी टुनमुनदिनेश चमोला
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शिक्षाप्रद कहानी आलसी टुनमुन....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आलसी टुनमुन
हीरामन दम्पती बहुत मिलनसार, ईमानदार व परोपकारी ही नहीं अपितु बहुत
सुन्दर व दानी भी थे। दूर-दूर जंगलों तक उनकी अच्छाई व सुन्दरता की चर्चा
थी। वे थे भी बहुत हितैषी। किसी भी जंगल में यदि कोई जीव-जन्तु थोड़े भी
कष्ट में रहता कि हीरामन दम्पती उनकी सेवा-सुश्रूषा में जुट जाते। अपने इन
गुणों के कारण आस-पास के जंगलों में उनका आदर भी बहुत था। उन्हें यदि दुख
था तो केवल एक ही उनकी सन्तान न थी। वे बहुत मेहनती थे। मेहनत से उन्होंने
बहुत-सा धन वैभव व अन्न भण्डार इकट्ठा कर रखा था। उन्हें दु:ख था कि इतने
बड़े अन्न-भण्डार का उपयोग उनकी मृत्यु के पश्चात् कौन करेगा। काश ! कोई
सन्तान होती तो हीरामन का वंश आगे चल निकलता।
समय बीता कि हीरामन दम्पत्ति के घर एक सुन्दर-सा पुत्र रत्न हुआ। नाम रखा। टुनमुन अपने माता-पिता की ही तरह सुन्दर था। अकेली सन्तान होने के कारण हीरामन दम्पत्ति ही नहीं बल्कि जंगल के जीव-जन्तु भी उसे देखते और प्रसन्न होते। टुनमुन बड़ा छोटा था। टुनमुन पेड़ की कोटर में टुकुर-टुकुर बाहर का संसार देखता रहता। कभी-कभी वह फुदक कर बाहर उड़ने की कोशिश करता। लेकिन दूसरे ही क्षण उसे लगता कि अपने घर से बाहर तो कई खतरे हैं....दुनिया बहुत खतरनाक है। अपने घर में तो केवल अपना ही राज है। फिर क्या लाभ खतरा मोल लेने में ? यह सोच टुनमुन फिर अपनी कोटर में जा छिपता। बाहर के पशु-पक्षी चारे के एक-एक दाने के लिए तरसते रहते तो टुनमुन के घर कई प्रकार का अनाज खुले में फैला रहता। वह सोचता, जब उसे बिना मेहनत के इतना कुछ मिल जाता है तो फिर बेकार में धूल फाँकने का क्या लाभ ? और तो और, उसके फेंके झूठे दानों को खा-खाकर पक्षियों का जीवन चल रहा था।
समय बीता कि हीरामन दम्पत्ति के घर एक सुन्दर-सा पुत्र रत्न हुआ। नाम रखा। टुनमुन अपने माता-पिता की ही तरह सुन्दर था। अकेली सन्तान होने के कारण हीरामन दम्पत्ति ही नहीं बल्कि जंगल के जीव-जन्तु भी उसे देखते और प्रसन्न होते। टुनमुन बड़ा छोटा था। टुनमुन पेड़ की कोटर में टुकुर-टुकुर बाहर का संसार देखता रहता। कभी-कभी वह फुदक कर बाहर उड़ने की कोशिश करता। लेकिन दूसरे ही क्षण उसे लगता कि अपने घर से बाहर तो कई खतरे हैं....दुनिया बहुत खतरनाक है। अपने घर में तो केवल अपना ही राज है। फिर क्या लाभ खतरा मोल लेने में ? यह सोच टुनमुन फिर अपनी कोटर में जा छिपता। बाहर के पशु-पक्षी चारे के एक-एक दाने के लिए तरसते रहते तो टुनमुन के घर कई प्रकार का अनाज खुले में फैला रहता। वह सोचता, जब उसे बिना मेहनत के इतना कुछ मिल जाता है तो फिर बेकार में धूल फाँकने का क्या लाभ ? और तो और, उसके फेंके झूठे दानों को खा-खाकर पक्षियों का जीवन चल रहा था।
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